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विश्व कषाय निवारके, जग सम्बन्ध विनाश । सिद्ध० जनममरण विनधू व लसै,नमूज्ञानपरकाश ॥ ह्रीप्रहं विश्वजेत्रे नम अध्यं ४५१ ॥ वि० विश्व-वास तुम जीतियो, विश्व नमावै शीश । ३२० पूजत है हम भक्तिसौं, जयवन्तो जगदीश ॥ह्री अहं विश्वजिते नम अयं ।।४५२॥
इन्द्रादिक जिनको नमें, ते तुम शीश नवाय । विश्वजीत तुम नाम है, शरणागत सुखदाय ॥ ॐ ह्रीग्रह विश्वजिन्वराय नम अध्यं । तीन लोककी लक्ष्मी, तुम चरणांबुज ठौर। यातै सब जग जीतिके, राजत हो शिरमौर । ह्री प्रहं जगज्जेत्राय नम प्रध्यं ४५४।। तीन लोक कल्याण कर, कर्मशत्रुको जीत । भव्यन प्रति प्रानंद कर, मेटत तिनकी भीति॥ह्रीप्रहं जगजिष्णवेनम अध्यं ५। है जग जीवनको अन्ध कर, फैलो मिथ्या घोर ।
अष्टम धर्ममार्गप्रकटायकर, पहुँचायो शिव ठौर ॥ॐ ह्रीं प्रहं जगन्नेत्राय नम अध्यं ४५६ पूजा मोहादिक जिन जीतियो, सोई जगमे नाम ।
१ ३२० सो तुम पद पायो महा, तुम पदकरू प्रणाम॥ ह्रीप्रहं जगजयिनेनम अध्यं ।४५७।।