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जाको अन्त न हो कभी, ज्ञान लक्षमी नाथ ।
सिद्ध सोईशिवपुरके धनी, नमूं भाव धरि नाथ ॥ नममर्यं । २६२ गिरधरादि नित ध्यावते, पावै शिवपुर वास ।
२६३ परम ध्येय तुम नाम है, पूरै मनकी प्राशही ग्रह योगीशाय नम त्र्यं २६३ परम ब्रह्मका लाभ हो, तुम पद पायो सार ।
त्रिभुवन ज्ञाताहो सही, नय निश्चय व्यवहार ॥ॐ ह्रीं पहं ब्रह्मविदे नम. ग्रर्यं । २६४। सर्व तत्त्वके श्रादिमें, ब्रह्म तत्त्व परधान ।
पतये नमः ।।२९६ ।
तिसके ज्ञाता हो प्रभू, मै बंद धरि ध्यान ॥ ही स्वाय नमः पत्यं । २६५ द्रव्य भाव द्वै विधि कही, यज्ञ यजनकी रोति । सो सब तुमही हेत, रचत नशै सब भीति ॥ महादेव शिवनाथ हो, तुमको पूजत लोक । मैं पूजूं भावस, मेटो मनको शोक ॥ॐ ह्रीं प्र विनापाय नमःप्रये ॥ २६७॥१ कृत्य भए निज भावमें, सिद्ध भये सब काज । पायो निज पुरुषार्थको, बंदू सिद्ध समाज ॥ॐ ह्रीं
कृतकृताय नम. पर्घ्यं । २६८ ।।
प्रष्टः
पूजा
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