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सिद
सूक्षम तथा स्थूलमें, ज्ञान कर परवेश ।
जाको तुम जानों नहीं, खाली रहो न देश ॥ ही पहं ववसूचनमःमध्यं ॥२८॥ Re! औरन प्रति प्रानन्द करि, निर्मल शुचि प्राचार ।
आप पवित्र भये प्रभू, कर्म धूलिको टार ॥ॐ ह्री पहं शुचिप्रवसे नम, अध्यं ॥२४६॥3 कर्मों करि किरतार्थ हो, कृत फल उत्तम पाय। करपर कर राजत प्रभू, बंदहूँ युग पाय॥हीमहकृतार्थकृतहस्तायनम अध्य।२५० । दर्शन इन्द्र प्रघात हैं, इष्ट मान उर माहिं।
कर्म नाशि शिवपुर बसै, मैं बंदूहूँ ताहि ॥ॐ ह्री प्रहं शक्रेष्ठाय नमःअध्यं ।।२५१॥ है । मघवा जाके नृत्य करि, ताक तृप्ति महान । । सो मै उनको जजत हूँ, होय कर्मको हान ॥ही अहंन्द्रनन्यतृप्तिकाय नम. प्रय॑ ।। शची इन्द्र अरु काम ये, जिन दासनके दास ।
ग्रण्टम निश्चयमनमे नमन कर, नितवंदित पदजासही प्रहंशचीविम्मापितायनम मध्य पूजा जिनके सनमुख नृत्य करि, इन्द्र हर्ष उपजाय । -
३२६१ जन्म सुफल मानै सदा,हम पर होउ सहाय ।। हो महंशक्रारम्यानदनृत्याय नमानध्या ।