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शुद्ध बुद्ध परमातमा, परम ब्रह्म कहलाय ।
सिद्ध० सर्व लोक उत्कृष्ट पद, पायो बंदू ताय ॥ ॐ ह्रीं श्रीं परमब्रह्मणे नमः अर्घ्यं ॥ १२१ ॥ चार ज्ञान नहिं जामें, शुद्ध सरूप अनूप ।
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परको नाहि प्रवेश है, एकाकी शिवरूप ॥ॐ ह्रीं प्रर्हं परमरहसे नम अर्घ्यं ।। १३०।। निज गुरण द्रव्य पर्यायमें भिन्न भिन्न सब रूप ।
एक क्षेत्र श्रवगाह करि, राजत है चिद्रूप ॥ॐ ह्री मर्हं प्रत्यक्षात्मने नम प्रर्घ्यं ।।१३१। शुद्ध बुद्ध परमातमा, निज विज्ञान प्रकाश । स्व-प्रतमके बोधतें, कियो कर्म को नाश ॥ॐ ह्री श्रहं प्रबोधात्मने नम अर्घ्यं । १३२ कर्म मैलसे लिप्त है, जगति श्रात्म दिन रैन ।
कर्म नाश महपद लियो, बंदू हूँ सुख देन ॥ॐ ह्रीं ग्रहं महात्मने नमःश्रयं ।। १३३॥ श्रातमको गुरण ज्ञान है, यही यथारथ होय ।
ज्ञानानन्द ऐश्वर्यता, उदय भयो है सोय ॥ॐ ह्री प प्रात्ममहोदयायनम श्रयं १३४ दर्श ज्ञान सुख वीर्यको, पाय परम पद होय ।
सो परमातम तुमभये, नमूं जोर कर दोय ॥ ॐही ग्रह परमात्मने नम प्रर्घ्यं । ३५|
अष्टम
पूजा
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