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जामे विर्घन न लेश है, उदय तेज विज्ञानं'।
जाकोहमजानतनहीं,सुलभरूप विधि ठान ही अहं परोदयाय नम अध्यं ॥१२२॥ । परम शक्ति परमातमा, पर सहाय विन प्राप ।
स्वयं वीर्य आनंदके, नमत कटै सब पाप ॥ॐ ह्री ग्रह परमौजमे नम प्रध्यं ।।१२३॥ । महातेजके पुंज हो, अविनाशी अविकार।
झलकत ज्ञानाकार सब, दर्पणवत् आधार ॥ॐ ह्री ग्रहं परमतेजसेनम.प्रयं ॥१२४६ परम धाम उत्कृष्ट पद, मोक्ष नाम कहलाय । जासोंफिरावतनहीं, जन्ममरगनशि जाय ॥ही अहं परमतेजसेनम अध्यं १२५ जगतगुरु सिद्ध परमातमा, जगत सूर्य शिव नाम । परमहंस योगीश हैं, लियो मोक्ष अभिराम ॥ॐ ह्रीं महं परमहसाय नम अध्यं ।१२६ । दिव्यज्योति स्व-ज्ञानमें, तीन लोक प्रतिभास । शंकाविनविश्वासकर, निजपरकियोप्रकाश ॥ ह्री महं प्रत्यक्षज्ञात्रेनमःअध्यं । १२७ ६ पूजा निज विज्ञान सुज्योतिमे, संशयः प्रादिक नाहिं। सो तुम सहज प्रकाशियो, मै बंदूहूँ ताहि ॥ ही अहं ज्योतिषे नम प्रय॑ ।।१२।।
अष्टम
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