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पराधीन अरु विघ्न विन, है सांचा आनन्द । सिद्ध सो शिवगतिमे तुम लियो, मै बंदू सुखकंद ॥ॐ ह्री प्रहं प्रानदाय नम प्रय॑ ।।१५। वि० सत प्रशंसता नित बहै, या सद्भाव सरूप । २७२
सो तुममे आनंद है, बंदत हूँ शिवभूप ॥ ह्रीं ग्रह सदानदाय नग अध्यं ॥११६।। उदय महा सत्रूप है, जामें असत न होय । अंतराय अरु विघन विन, सत्य उदै है सोय ॥ ही प्रहं सदोदयाय नम प्रय। ११७॥ नित्यानन्द महासुखी, हीनादिक नहीं होय । । नहीं गत्यंतर रूप हो, शिवगति में है सोय ॥ ही अहं नित्यानदायनम.अणं ।। १८ ६ जासों परे न और सुख, अहमिन्द्रनमे नाहि । है सोई श्रेष्ठ सुख भोगते, बंदूहूँ मै ताहि ॥ॐ ह्री ग्रह परमानदाय नम अयं ॥११॥ । पूरण सुखकी हद धरै, सो महान प्रानन्द ।
सो तुम पायो शिव-धनी, बंदूपद अरविंद ॥ॐ ह्री अहं महानदायनम अयं ॥१२०॥ पूजा उत्तम सुख स्वाधीन है, परम नाम कहलाय ।
२७२ चारों गतिमें सो नहीं, तुम पायो सुखदाय ॥ॐ ह्री पहं परमानदायनम अयं ।१२१
प्रष्टम