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सिद्धा
। मोहकर्म के नाशते, शान्ति भये सुखदेन । विक्षोभरहित प्रशान्त हो, शांत नमूसुखलेन ॥ ही अहं प्रशा तात्मने नम प्रध्यं । १३॥ २७५ / पूरण पद तुम पाइयो, यातै परे न कोय ।
तुम समान नहीं और है, बंदू हूँ पददोय ॥ॐ ह्री अहं परमात्मने नमोऽपयं ।। १३७॥
पुद्गल कृत तन छारक, निज आतममे वास। ३ स्व प्रदेश गृहके विषे, नित ही करत विलास ॥हीअहं प्रात्मनिकेतनाय नम अयं । ६
औरन को नित देत हैं, शिवसुख भोगै पाप । परमइष्ट तुमहो सदा, निजसम करत मिलाप ॥ ह्रीमहं परमेष्ठिने नम अयं १३९७ । मोक्ष लक्ष्मी नाथ हो, भक्तन प्रति नित देत । । महा इष्ट'कहलात हो, बंदूशिवसुख हेत ॥ह्रोपहँ महिनात्मने नम प्रध्यं ॥१४॥ रागादिक मल नाशिक, श्रेष्ठ भये जगमांहि ।
अष्टम सो उपासना करणको, तुम सम कोई नाहि ॥ ह्रीअहं श्रेष्ठात्मने नम प्रय॑ ।१४१ परमें ममत विनाशक, स्व आतम थिर धार । पर विकल्प संकल्प विन,तिष्ठो सुखनाधार ॥ ह्रीं अहं स्वात्मनिष्ठिताय नम.अध्यं
पूजा
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