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प्रतिष्ठित घराने में लाना शीलचन्दजी के वशज थे । कविवर का जन्म सन् १८३४ मे हुआ। कवि के सस्कार प्रारभ से ही धार्मिक थे जो माता पिता से विरासत मे मिले थे । परिवार
के सब लोग धर्मात्मा थे । आपने रुडकी कालेज मे अध्ययन किया। साहित्य से आपको प्रेम सिद्ध था। सिद्धचक्र की हिन्दी पूजा न होनेसे आपने इसका विचार किया और प्रस्तुत रचना वि०, कर डाली । इस पूजन मे जगह जगह जो जैन सिद्धान्त सम्बन्धी विवरण आया है-उमसे
आपके सैद्धान्तिक ज्ञान का भली प्रकार परिचय मिलता है। आप विद्वान् थे, कवि थे और है भक्त थे। जैन धर्म पर किसी प्रकार का आघात पाप सहन नहीं करते थे। आर्य समाज । के साथ कई बार आपके शास्त्रार्थ हुए-जिसमे आप विजयी रहे । आप स्वतत्र व्यवमायी थे, आपने नौकरी नहीं की। आप सुधारवादी विचारो के थे-समाज में व्याप्त कई रूढियो । और कुरीतियो के निवारण मे आप और आपके परिवार ने काफी योगदान किया है। जैन ! विवाहविधि के अनुसार विवाह कराने की परिपाटी उस प्रान्त मे आपने चलाई। मिथ्यात्व १ वर्धक कई रूढियो को आपने मिटाया । आप अधिक नही जिये अन्यथा और कई कार्य आप १ कर जाते । ५२ वर्ष की आयु मे जून सन् १८८६ मे आपका स्वर्गवास हो गया। आपने सिद्ध
चक्र मडल विधान के अतिरिक्त भी कुछ पूजाये एव अनेक भजन लिखे हैं । भजनो का संग्रह । । नकुड मे श्री नरेशचन्दजी साहब रईस के पास है-जिसे प्रकाशित करना चाहिए।
हमे यह सक्षिप्त परिचय श्री नरेशचन्दजी द्वारा ही प्राप्त हुआ है । हम उनके अत्यन्त ।