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सिख नमत सुरासुर जिन चरन, तीन काल धरि ध्यान । वि०सिद्ध जिनेश्वर मै नम्, पाऊं शिवसुख थान ॥ ॐ ह्रीं ग्रह जिनेश्वराय नम अध्या। २५७ ६ तीन लोक तारण तरण, तीन लोक विख्यात।
सिद्ध महा जिननाथ है, सेवत पाप,नशात ॥ ॐ ह्री मह जिननायाय नम अध्यं ।।१०॥ एकदेश श्रावक तथा, सर्वदेश मुनिराज । नितप्रति रक्षकहो महा,सिद्धसु पुण्यसमाज ॥ ॐह्री प्रहं जिनपतये नमःप्रध्यं ॥१॥ त्रिभुवन शिखाशिरोमणी, राजत सिद्ध अनंत । ६ शिवमारग परसिद्धकर, नमतभवोदधि अंत ॥ ह्री अर्ह जिनप्रभवे नम.अध्यं ।१२। जिन आज्ञा त्रिभुवनविष, वरते सदा अखंड़। मिथ्यामति दुरपक्षको, देत नीतिसों दंड ॥ ॐही अहं जिनाधिराजायनम,मध्य ।१३।। ई तीन लोक परिपूर्ण है, लोकालोक प्रकाश ।
अष्टम राजत है विस्तीर्ण जिन, नमूहरोभववास॥ ॐही अहं जिनविभवे नमःप्रयं ।१४॥ पूजा प्रात्मज्ञ जिन नमत हैं, शुद्धातमके हेत।
३२५७ स्वामी हो तिहुँ लोकके, नमूबसे शिवखेत॥ ॐ ह्रीं गई जिनमत्र नम अयं ॥१५॥