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सिद्ध
पंच परम गुरु प्रकट तुम्हारो नाम है, भेदाभेद सुभाव सु प्रातमराम है मोक्षमार्ग ० ॐ ह्री माधुग्रतमिद्धाचार्योपाध्याय ममानुभ्यो नम प्रध्यं ॥ ५१० ॥ वि० लोकालोकसुव्यापकज्ञानसुभावते, तद्यपिनिजपद लीनविहीन विभावतें । मोक्षमार्ग ० ॐ ही माघुप्रात्मतये नम अर्घ्यं ।। ५११ ।।
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रतनत्रय निज भाव विशेष अनंत है, पचपरमगुरुभये नमें नित संत हैं मोक्षमार्गः ॐ ह्री माधप्रति मिद्धाचार्योपाध्याय मर्ग साघुरनययात्मकानतगुणेभ्य नमः श्रध्यं । पंच परम गुरु नाम विशेषरणको धरै, तीन लोकमे मंगलमय आनंद करें पूरणकर थुतिनाम अन्त सुख कारणं, पूजूं हूँ युत भावसुप्रर्ध उतारगं ॐ ह्री प्रद्वादश घिकपचशनगुणयुतमिद्धेभ्यो नम पूयम् ।
अथ जय माला ।
रत्नत्रय भूषित महा, पंच सुगुरु शिवकार | सकल सुरेन्द्र नमें नमूं पाऊं सो गुणसार ॥१॥
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पदडी छन्द ।
जय महामोह दल दलन सूरि, जय निर्विकल्प श्रानन्दपूर | जय द्वं विधि कर्म विमुक्त देव, जय निजानन्द स्वाधीन एव |१|
नप्तमी
पूजा
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