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निजतुभाव सामर्थ सु प्रभुता पाइयो, इन्द्र फनेंद्र नरेद्र शीश निजनाइयो । मनमोक्षमार्ग वा मोक्षश्रेय सब साधु है, नमत निरंतर हमहूँ कर्म रिपुको दहैं वि०१
प्रो ह्री माधुस्वभावसहिताय नमः अध्यं ।। ५०३ ।। २४८ कर्मबंधसो रहित सोई शिवरूप है, निवसे सदा प्रबंध स्वशुद्ध अनूप है ३ मोक्षमार्ग० ॐ ह्री माधुमोक्षस्वरूपाय नम. अर्घ्य ॥ ५०४ ।। सकल द्रव्य पर्याय विषै स्वज्ञान हो, सत्यारथ निश्चल निश्चै परमारण हो ३ मोक्षमार्ग० ॐ ह्री माधुपरमानन्दाय नम. अध्यं ॥५०५।
तीन लोकके पूज्य यतीजन ध्यावही, कर्म-शत्रुको जीत अर्ह पद पावही । मोक्षमाग० ॐ ह्री साधुमहतस्वरूपाय नम अयं ।।५०६।। परम इष्ट शिव साधत सिद्ध कहाइयो, तीन लोक परमेष्ट परमपद पाइयो । मोक्षमार्ग० ॐ ह्री साघुसिद्धपरमेष्ठिने नम अयं ॥५०॥ शिवमारगप्रकटावनकारणहोतुम्ही, भविजनपतितउधारनतारनहोतुम्ही षष्ठम् है मोक्षमार्ग० ॐ ह्री माधुसूरिप्रकाशिने नम अध्यं ।। ५०८।।
पूजा स्वपरस्वहितकरि परमबुद्धि भरतारहो, ध्यानधरतानंदबोधदातारहो
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मोक्षमाग०
ॐही साघु उपाध्यायाय नमः अयं ॥५०९।।