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त्रसनाडीही मैं तत्त्वज्ञान सरधानी,ताकर साधै निश्चय पावै शिवरानी। मिद निजरूपमगनमन ध्यानधरै मुनिराजै, मैनम् साध सम सिद्धअकंपबिराजै
ॐ ह्री साधुलोकशरणाय नमः अयं ॥४७९।। २४४ तिलोककरनहितवरते नित उपदेशा, हमशरणगही मेटो भववासकलेशा
निजत्प० ॐ ह्री साधुत्रिलोकशरणाय नम अध्यं ।।४७५।। संसारविषम दुखकारप्रसारअपारा,तिलछेदकवेदक सुखदायक हितकारा 5 निजरूप० ॐ ह्री साधुमसाग्छेदकाय नम अयं ॥४७६।। यद्यपिइकक्षेत्र अवगाहअभिन्न विराज, तद्यपिनिजसत्तामाहि भिन्नतासाज
निजरूप० ॐ ह्री साधुएकत्वाय नमः अध्यं ॥४७७॥ यद्यपिसामान्यसरूपसु पूरणज्ञानी,तद्यपिनिज आश्रयभावभिन्न परनामी
निजरूप० ॐ ह्रो साधुएकत्वगुणाय नम अयं ॥४७८।। हैप्रसाधारणएकत्व द्रव्य तुममाहीं, तुमसम संसार मंझारऔर कोउनाही , निजरूप
"महा पष्ठम ॐ ह्री साधुएकत्वद्रव्याय नम अयं ४७६।।
पूजा यद्यपि सबहीहोअसंख्यात परदेशी,तद्यपिनिजमे निजरूपस्वद्रव्यसुदेशी २४४
ॐ ह्री साधुएकत्वस्वरूपाय नम अयं ।। ४८०॥
निजरूप०