________________
वि०
सिद्ध तुमअसाधारण अरु परमात्मप्रकाशी, नहींअन्यजीवयहलहै गहैभववासी
निजरूप. ॐ ह्री साधुपरमात्मप्रकाशाय नम अध्यं ॥४६६।।। तुममोहतिमिरविनस्वयसूर्यपरकाशी,गुणद्रव्यपर्यसबभिन्नभिन्नप्रतिभासी
निजरूप० ॐ ह्री साधुज्योतिस्वरूपाय नम अध्य ।।४६७।। ज्योंघटपटादिदीपककोज्योतिदिखावै, त्योंज्ञानज्योतिसबभिन्न २ दरशावै
____ निजम्प० ॐ ह्री साधुज्योतिप्रदीपाय नम अध्यं ।।४६८|| सामान्यरूप अवलोकन युगपत सारा, तुमदर्शनज्योतिप्रदीपहरैअंधियारा, । निजरूप. ॐ ह्री साधुदर्शनज्योतिप्रदीपाय नम प्रध्यं ॥४६६ । साकार रूपसु विशेष ज्ञानाति माहीं, युगपतकरप्रतिबिंबित वस्तूप्रगटाई
____निजरूप० ॐ ह्री साधुज्ञानज्योतिप्रदीपाय नम अध्यं ।।४७०।। जेअर्थजन्य कहैज्ञान वो झूठेवादी, हैस्वपर प्रकाशकातम ज्योतिअनादी)
__ निजरूप० ॐ ह्री साधुप्रात्मज्योतिषे नम अध्यं ॥४७१॥ हैतारणतरणजहाजाश्रितभवसागर, हमशरणगहीपावैशिववासउजागर ससमी निजरूप० ॐ ह्री साधु शरणाय नम अध्यं ॥४७२।।
पूजा सामान्य रूप सब साधुमुक्ति मगसाध, हमपावै निजपद नेमरूप पाराधे ।
निजरूप० ॐ ह्री साधुमशरणाय नम अध्यं ।। ४७३।।
२४३