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फिर जन्ममरण नहीं होयजन्मवोपाया, संसारविलक्षणनिजअपूर्वपदपाया सिद्धः निजरूपमगनमन ध्यानधरै मनिराजै, मैन साध सम सिद्धअकंपबिराजै वि०
ॐ ह्री साधुद्रव्योत्पादाय नमोऽयं ।।४५८॥ २४२ सूक्षमअलब्धि पर्याप्त निगोद शरीरा, ते तुच्छ द्रव्य करनाश भयेभवतीरा
निजरूप० ॐ ह्री साधुद्रव्यव्यापिने नमोऽयं ॥४६०।। रागादिपरिग्रहटारितत्त्वसरधानी, इमसाधुजीवनिजसाधत शिवसुखदानी .. निजरूप० ॐ ह्री साधुजीवाय नमोऽयं ॥४६१।। स्वसंवेदनविज्ञान परमअमलाना, तजइष्टअनिष्ट विकल्प जाल दुखसाना • निजरूप० ॐ ह्री साधुजीवगुणाय नम अयं ॥४६२।। देखन जानन चेतनसुरूप अविकारी, गणगणी भेदमअन्यभेद व्यभिचारी
निजरूप० ॐ ह्री साधुचेतनगुणाय नम अयं ॥४६३ । चेतनकीपरिणति रहैसदाचित माहीं, ज्योसिंधुलहरहीसिंधु औरकछुनाहीं सप्तमी
निजरूप० ॐ ह्री साधुचेतनस्वरूपाय नम अध्यं ॥४६४।। चेतनविलाससुखरासनित्यपरकाशी, सोसाधुदिगम्बरसाधुभये अविनाशी २४२
ॐ ह्री माधुचेतनाय नम अयं ॥४६५।।
निजरूप