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प्राश्रव कर्म दुखदाई, रुके संवर ये सुखदाई । पूर्ण०
ॐ ह्री पाठकसवराय नम अध्य३६२॥ सर्वथा जोग विनसोया, स्वसंवर रूप दरशाया। पूर्ण.
ॐ ह्री पाठकसवरस्वरूपाय नम: मध्यं ॥३३॥ भावमें कलुषता नाहीं, भये संवर करण ताहीं । पूर्ण.
- ॐ ह्री पाठकसवरकरणाय नमः अयं । ३६४।। कुपरगति राग रुष नाशन, निरंजरा रूप प्रतिभासन । पूर्ण.
___ॐ ह्री पाठकनिर्जरास्वरूपाय नम अध्यं ॥३६॥ कामदेव दाह जंग सारा, आप तिस भस्प कर डारा । पूर्ण.
ॐ ह्री पाठककदपंछेदकाय नमः अध्यं ॥३६६ ॥ चहुँ विधि बंध विधि चूरा, ये विस्फोटक कहो पूरा । पूर्ण.
ॐ ह्री पाठकमविस्फोटकाय नम अध्यं ॥३९॥ दऊ विधि कर्मका खोना, सोई है मोक्षका होना । पूर्ण.
ॐ ह्री पाठकमोक्षाय नमः मयं । ३९८।। द्रव्य पर भाव मल टारा, नम शिवरूप सुखकारा । पूर्ण.
ॐ ह्री पाठकमोक्षस्वरूपाय नम. अध्यं ।। ३६६ ।।
मिप्तमी
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