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सिद्ध०
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शरण अनिवार सुखदाई, प्रगट सिद्धान्त में गाई | पूर्ण श्रुतज्ञानं बल पाया, नमू सत्यार्थ उवझाया ॥ ॐ ह्री पाठकत्रिमगलशरणाय नमोऽयं ।। ३६५ ।।
लोकमे धर्म विख्याता, सों तुमही में सुखसाता । पूर्ण.
ॐ ह्री पाठकलोकशरणाय नमः अयं । ३८६ ॥
जोग विन प्राश्रव नाहीं, भये निर श्राश्रवा ताही । पूर्ण.
ॐ ह्री पाठकाश्रववेदाय नमः अयं ॥ ३८७॥
श्राश्रव करमका होना, कार्य था आपना खोना । पूर्ण.
ॐ ह्री पाठका विनाशाय नमः प्रयं ॥ ३८८ ॥
तत्त्व निर्बाध उपदेशा, विनाशे कर्म परवेशा । पूर्ण.
ॐ ह्री पाठक श्राश्रव उपदेशछेदकाय नम. अध्यं ।। ३८ ।।
प्रकृति सब कर्मकी चूरी, भाव मल नाश दुख पूरी । पूर्ण.
ॐ ह्री पाठकबध प्रन्तकोय नम मध्यं ॥ ३९०॥
न फिर संसार अवतारा, बन्ध विधि अन्त केर डारा । पूर्ण. ॐ ह्री पाठकबषमुक्ताय नम प्रध्यं ॥ ३१॥
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षष्ठम् पूजा
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