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________________ NA सिद्ध MAU जे जे है परनाम विना परनामी नाहीं। परनामी परनाम एक ही हैं तुम माहीं। शिष्यनके० ॐ ह्री पाठकद्रव्यपर्यायाय नम अध्यं ।।०६। अगुरुलघू पर्याय शुद्ध परनाम बखानी, निज सरूपमें अन्तरगत श्रुतज्ञान प्रमानी। शिष्यनके० "* ह्री पाठकपर्यायस्वरूपाय नम' अध्यं ।३१०॥ जगतवास सब पापमूल जियको दुखदाई, ताको नाशन हेतु कहो शिव मूल उपाई । शिष्यनके० ॐ ह्री पाठकमगलाय नम अर्ध्य ॥३११।। जहां न दुखको लेश सर्वथा सुख ही जानो, सोई मंगल गुण तुममें प्रत्यक्ष लखानो । शिष्यनके० ___ॐ ह्री पाठकममगलगुणाय नम अर्घ्य ॥३१२॥ औरन मंगलकरन प्राप मंगलमय राजै, दर्शन कर सुखसार मिलै सब ही अघ भाजै। शिष्यनके० ॐ ह्री पाठकमगलगणस्वरूपाय नम अयं ॥३१३।। mmsmumm सप्तमी YAPUR पूजा २२१
SR No.010799
Book TitleSiddhachakra Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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