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APLIAM
दर्शन ज्ञान स्वभाव धरो तद्रूप अनूपी, हीनाधिक बिन अचल विराजत शुद्ध सरूपी। शिष्यनके०
ॐ ह्री पाठकगुणस्वरूपेभ्यो नमः अध्यं ।। निज गुरण वा परयाय अस्खण्डित नित्य धरै है। तिहुँ काल प्रति अन्य भाव नहीं ग्रहण करै है। शिष्यनके०
____ॐ ह्री पाठकद्रव्याय नमः अध्यं ॥३०५।। सहभावी गुरण सार जहां परभाव न लेसा, अगुरुलघू परणाम वस्तु सद्भाव विशेषा। शिष्यनके०
ॐ ह्री पाठकगुणपर्यायेभ्यो नम अध्यं ॥३०६।। गुरण समुदायी द्रव्य याहितें निरगुरण नाहीं । सो अनन्त गुरण सदा विराजत तुम पद माहीं। शिष्यनके०
ॐही पाठकगणद्रव्याय नमः अध्यं ॥३०७।। सत सरूप सब द्रव्य सधै नीके अबाधकर। सो तुम सत्य सरूप विराजो द्रव्य भाव धर । शिष्यनके०
ॐ ह्री पाठकद्रव्यस्वरूपाय नम अध्यं ।। ३०८।।
ससमी
narina
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