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हो कर्तादि अनेक सुभाव, निजातम में परमै अनिवार। सिद्धा सो परको न लगाव रहो, निजही निजकर्मरहोसुखकार सूरि०।२७६॥ वि.
ॐ ह्री सूरिनिजस्वभावधारकाय नम अध्यं । २१५ । द्रव्य तथापि, विभाव दोऊ, विधि कर्म प्रवाह बहै विन आदि। १ ते सब एक भये थिररूप, निजातम शुद्ध सुभाव प्रसादासूरि०।२८०।।
___ॐ ह्री सूरिभाश्रवविनाशाय नमः अर्घ्य । . (मोदकछंद) बंध दऊ विधिके दुख कारण, नाशकियो भवपार उतारण सरि भये निज ज्ञान कलाकार, सिद्ध भये प्रण मै मनधर ॥
ॐ ह्री सूरिबधतत्त्वविनाशाय नम अध्यं ।।२८१॥ ३ सम्वरतत्त्व महा सुख देत है, पाश्रव रोकनको यह हेत है । सिरि० ।
ॐ ह्री सूरिसवरतत्त्वसहिताय नमः अयं ॥२२॥ ज्यूमरिण दीप अडोल अनूपही, संवर तत्व निराकुलरूप ही। सूरज सामो
ॐ ह्री सूरिसवरतत्त्वस्वरूपाय नम, अध्यं ॥२८५४ संवरके गुण ते मुनि पावत, जो मुनि शुद्ध सुभाव सध्यावत सरि ६२१५
____ॐ ह्री सूरिसवरगुणाय नमः अध्यं ॥२८॥
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पूजा
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