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हो नित ही परणाम समय प्रति, सो उत्पाद कहो भगवान । सिज सोतुमभावप्रकाशकियो, निज यह गुरणका उत्पाद महान।।सूरि०२७४। वि.
ॐ ह्री सूरिगुणोत्पादाय नम अर्घ्य । . २१४ । ज्योमृतिका निज रूप न छांडत, है घटमांहि अनेक प्रकार । । सो तुम जीव स्वभाव धरो नित, मुक्तभए जगवास निवार सूरि०।२७५
ॐ ह्री सूग्ध्रि वगुणोत्पादाय नम अर्घ्य । थे जगमे सब भाव विभाव, पराश्रित रूप अनेक प्रकार । ते.सब त्याग भए शिवरूप, अबध अमन्द महासुखकार सूरि०।२७६। __ ॐ ह्री सूरिव्ययगुणोत्पादाय नम अध्यं । जे जगमे-षद् द्रव्य कहै, तिनमें इक जीव सु ज्ञान स्वरूप । और सभी विनज्ञान कहै, तुम राजत हो नित ज्ञान अनूप सूरि०।२७७ '
ॐ ह्री सूरिजीवतत्त्वाय नम अध्यं । 5 ज्ञान सुभाव धरो नित ही, नहीं छोड़त हो कबहूँ, निज वान । पूजा ६ येही विशेष भयो सबसो नहीं, औरनमें गुण ये परधान सूरि०।२७८। २१४
ॐ ह्री सूरिजीवतत्त्वगुणाय नम। अयं ।
षष्ठम