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वि० १८२
अन्तर द्वीप मही जहां, देवन के अभिराम है। सिद्ध भये तिहुँ योगतै, तिनके पद परिणाम है ॥१२८॥ ___ॐ ह्री द्वीपसिद्ध भ्यो नमः मध्यं ।। देव गये ले सिंधु जब, कर्म छयो तिह ठाम है। सिद्ध भये तिहुँ योगतै, तिनके पद परिणाम है ॥१२६॥ ___ॐ ह्री उदधिसिद्ध भ्यो नमः अध्यं ।
. भुजगप्रयात छन्द। धरे जोग आसन गहै शुद्धताई, न हो खेद ध्यानाग्नि सों कर्म छाई। भये सिद्ध राजा निजानंद साजा, यही मोक्ष नाजा'नमः सिद्धकाजा॥
ही स्वस्थित्यासनसिद्धेभ्यो नम अध्यं ॥१३०॥ महा शांति मुद्रा पलौथी लगाये, कियो कर्म को नाश ज्ञानी कहाये। भये सिद्ध राजा निजानंद साजा, यही मोक्ष नाजा नमःसिद्ध काजा॥
ॐ ह्री पर्यकासनसिद्धेभ्यो नम. अयं ।।१३१॥ लहै आदिको संहनन पुरुष देही, लखायो परारंभ मे भाव ते ही। पूजा भये सिद्ध राजा निजानंद साजा, यही मोक्ष नाजा नमःसिद्ध काजा॥ १८२ ॐ ह्री पुरुषवेदसिद्धेभ्यो नम. मध्यं ॥१३२।।
। १, नाजा-स्त्री.
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षष्ठम्