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छ्य उपशम ज्ञानी विघन रूप, ता विन जिन ज्ञानी शिव सरूप । सिद्ध, हम शरण गही मन वचन काय, नित नमै 'संत' आनन्द पाय ७३॥
ॐ ह्री अहन्मगलज्ञानशरणाय नम अध्यं । १७१३ अरहंत दर्श मंगल स्वरूप, तासो दरशै शिव-सुख अनूप । हम शरण गही मन वचन काय, नित नमै 'संत' आनन्द पाय ७४।
ॐ ह्री अर्हन्मगलदर्शनशरणाय नमः अध्यं । अरहन्त बोध है मंगलीक, शिव मारग प्रति वरते अलीक । हम शरण गही मन वचन काय, नित नमै 'संत' प्रानन्द पाय ७५॥
ॐ ह्री अर्हन्मगलबोधशरणाय नम. अयं । निज ज्ञानानन्द प्रवाह धार, वरते प्रखण्ड अव्यय अपार । हम शरण गही मन वचन काय, नित नमै 'संत' प्रानन्द पाय ७६। ॐ ह्री अर्हन्मगलकेवलशरणाय नम अध्यं ।
सप्तमी जा विन तिहुँ लोक न और मान, भव सिंधु तरण तारण महान। पूजा हम शरण गही मन वचन काय, नित नमैं 'संत' आनंद पाय ७७। ११७१
ही लोकोनमशरगाय नम प्रय॑ ।