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सिद्ध
१७.
आवरण रहित प्रत्यक्ष ज्ञान, शिवरूप केवली जिन सुजान । हम शररण गही मन वचन काय, नित नमैं 'संत' आनन्द पाय।६८।
ॐ ह्री अर्हत्केवलशरगाय नमः अध्यं । मनि केवलज्ञानी जिन अराध, पावै शिव-सुख निश्चय अबाध । हम शरण गही मन वचन काय, नित नमै 'संत' प्रानन्द पाय ॥६६॥
ॐ ह्री अर्हत्केवलशरणस्वरूपाय नम. अध्यं । शिव-सुखदायक निज प्रात्म-ज्ञान, सो केवल पावै जिन महान । हम शरण गही मन वचन काय, नित नमै 'संत' आनन्द पाय ७०॥
ॐ ह्री महत्केवलधर्मशरणाय नम प्रय॑ । यह केवल गुण प्रातम स्वभाव, अरहन्तन प्रति शिव-सुख उपाय। हम शरण गही मन वचन काय, नित नमै 'संत' प्रानन्द पाय ७१।
___ह्री अर्हत्केवलगुणशरणाय नम अध्यं । संसार रूप सब विघन टार, मंगल गुण श्री जिन मुक्तिकार । सप्तमी हम शरण गही मन वचन काय, नित नमै 'संत' आनन्द पाय ७२।।
ॐ ह्री अहन्मंगलगुणशरणाय नम अध्यं ।
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पूजा