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स्वाभाविक भव्यन प्रति दयाल, विच्छेद करण संसार जाल । हम शरण गही मन वचन काय, नित नमै 'संत' आनंद पाय ७८।।
ॐ ह्री अहल्लोकोत्तमशरणाय नम अध्य। तुम विन समरथ तिहुँ लोकमांहि, भवसिंधु उतारण और नाहिं। हम शरण गही पन वचन काय, नित नमै 'संत' आनन्द पाय ७६
ॐ ह्री अहल्लोकोत्तमवीर्यशरणाय नमः अध्यं । बिन परिश्रम तारण तरण होय, लोकोत्तम अद्भुत शक्ति सोय । हम शरण गही मन वचन काय, नित नमै 'संत' आनंद पाय 1८०॥
ॐ ह्री अहल्लोकोत्तमवीर्यगुणशरणाय नम अध्यं । अप्रसिद्ध कुनय अल्पज्ञ भास, ताको विनाश शिवमग प्रकाश । हम शरण गही मन वचन काय, नित नमै 'संत' आनन्द पाय।१।
___ ॐ ह्री अहल्लोकोत्तमद्वादशागशरणाय नमः अध्यं । सब कुनय कुपक्षं कुसाध्य नाश, सत्यारथ-मत कारण प्रकाश। हम शरण गही मन वचन काय, नित नमैं संत प्रानन्द पाय ८२।।
१७२ ही अहल्लोकोत्तमाभिनियोधकाय नम. अयं ।
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