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करि अर्घ सिद्ध समूह पूजत, कर्मदल सब दलमलै ॥ ते कर्म प्रकृति नशाय युगपति, ज्ञान निर्मल रूप है। दुख जन्म टाल अपार गुण, सूक्षम सरूप अनूप है। कर्माष्ट विन त्रैलोक्य पूज्य, अछेद शिव कमलापती ।
मुनि ध्येय सेय अमेय चहुगुरण, गेह धो हम शुभ मती॥ ॐ अहत्सिद्धचक्राधिपतये नमः समत्तणाणादि अट्ठगुणाणं पूर्णपदप्राप्तये महायं ।
पाँचसै बाहर गुण सहित नाम अर्ध ।
___अर्द्ध छन्द जोगीरासा । लोकत्रय करि पूज्य प्रधाना, केवल ज्योति प्रकाशी। भव्यन मन तम मोह विनाशक, बन्दू शिव थल वासी ॥१॥
ॐ ह्री अरहताय नम अध्यं । सुरनर मुनिमन कुमुदन मोदन, पूरण चन्द्र समाना। हो अहंत जात जन्मोत्सव, बन्दू श्री भगवाना ॥२॥
ॐ ह्री अर्हज्जाताय नम. अध्यं ।
ससमी
पूजा १५६