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केवल दर्श ज्ञान किरणावलि, मंडित तिहुँ जग चन्दा । मिथ्यातप हर जल आदिक करि, बन्दू पद अरविन्दा ॥३॥
ॐ ह्री अर्हच्चिद्रू पाय नमः अध्यं । घाति कर्म रिपु जारि छारकर, स्व चतुष्टय पद पायो । निज स्वरूप चिद्रूप गुणातम, हम तिन पद शिर नायो ॥४॥
ॐ ह्री अर्हच्चिद्रपगुणाय नमः अयं । । ज्ञानावरणी पटल उघारत, केवल भान उगायो । भव्यन को प्रतिबोध उधारे, बहुरि मुक्ति पद पायो ॥५॥
ॐ ह्री अर्हज्ज्ञानाय नम अर्घ्य । धर्म अधर्म तास फल दोनों, देखो जिम कर-रेखा । बतलायो परतीत विषय करि, यह गुण जिनमे देखा ॥६॥
___ॐ ह्री अर्हद्दर्शनाय नमः अध्यं । मोह महा दृढ बंध उघारो, कर विषतन्तु समाना। अतुल बली प्ररहंत कहायो, पाय नमूशिवथाना ॥७॥
ॐ ह्री अहंद्वीर्याय नमः अयं ।
मतमो