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वि०
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अथ जयमाला
दोहा -- थावर शब्द विषय धरै त्रस थावर पर्याय ।
यो न होय तो तुम सुगुरण, हम किहविधि वरर्णाय ॥१॥ तिसपर जो कछु कहत हैं, केवल भक्ति प्रमान । बालक जल शशिबिबको, चहत ग्रहरण निज पान ॥२॥
पद्धडी छन्द ।
जय पर निमित्त व्यवहार त्याग, पायो निज शुद्ध स्वरूप भाग । जय जग पालन विन जगत देव, जय दयाभाव विन शांतिभेव ॥१॥ परसुख दुखकररण कुरीति टार, परसुख दुख कारण शक्ति धार । फुनिफुनि नव नव नित जन्मरीत, बिन सर्वलोक व्यापी पुनीत ॥२॥ जय लीला रास विलास नाश, स्वाभाविक निजपद रमरण वास । शयनासन आदि क्रिया कलाप, तज सुखी सदा शिवरूप आप ॥३॥ विन कामदाह नहिं नार भोग, निरद्वंद निजानंद मगन योग । वरमाल श्रादि श्रृंगार रूप, विन शुद्ध निरंजन पद अनूप ॥४॥
सप्तमी
पूज
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