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सिद्ध० वि०
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सब भाग अनन्तानन्ता, यह सूक्ष्मभाव धारंता । विधि नन्तानन्त परजारा, हम पूज रचो सुखकारा ॥१६१॥ ॐ ह्री अनन्तानन्तकर्मरहिताय नमः अयं । मोतीयादाम छन्द |
न हो परिणाम विषै कछु खेद, सदा इकसा प्रणवै बिन भेद | निजाश्रित भाव र सुखधाम, करू तिस श्रानन्दको परिणाम' |
ॐ ह्री आनन्दस्वभावाय नम अर्घ्यं । । १६३ ॥ धरै जितने परिणामन भेद, विशेषनि तै सब ही बिन खेद । पराश्रितता बिन आनन्द धर्म, नमू तिन पाय लहू पद शर्म ॥ ॐ ह्री आनन्दधर्माय नमः अर्घ्यं ।। १६३ ।।
न हो परयोग निमित्त विभाव, सदा निवसे निज श्रानन्द भाव । यही वरणो परमानन्द धर्म, नमू तिन पाय लहू पद पर्म ॥
ॐ ह्री परमानन्दघर्माय नमः अयं ।। १६४ ।।
कभू परसो कछु द्वेष न होत, कभू फुनि हर्ष विशेष न होत । रहे नित ही निज भावन लीन, नमू पद साम सुभाव सु लीन ॥
ॐ ही साम्यस्वभावाय नमः अर्घ्यं ।। १६५ ॥
[१ परिणाम = प्रणाम =नमस्कार ]
षष्ठम्
पूजा
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