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ज्ञानावरणादिक नामी, निज भाग उदय परिणामी। अठ भेद कर्म परजारा, हम पूज रचो सुखकारा ॥१५६॥ .
___ॐ ह्री अष्टकर्मरहिताय नम अयं । इकसो अड़ताल प्रकारी, उत्तर विधि सत्ता धारी। सब प्रकृति कर्म परजारा, हम पूज रचो सुखकारा ।१५७।। ॐ ह्री एकशताष्टचत्वारिंशत् कर्मप्रकृतिरहिताय नम अध्यं । पररणाम भेद संख्याता, जो वचन योग में आता। संख्यात कर्म परजारा, हम पूज रचो सुखकारा ॥१५८॥
___ॐ ह्री सख्यातकर्मरहिताय नम अध्यं । है वचननसो अधिकाई, परिणाम भेद दुखदाई। विधि असंख्यात परजारा, हम पूज रचो सुखकारा।१५६।।
ॐ ह्री असख्यातकर्मरहिताय नम अध्यं । अविभाग प्रछेद अनन्ता, जो केवलज्ञान लहन्ता। षष्ठम यह कर्म अनन्त परजारा, हम पूज रचो सुखकारा ॥१६०॥
ॐ ह्री अनन्तकमरहिताय नम अयं ।
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पूजा