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________________ सिद्ध वि० १२७ हो दान देनको भावा, दे सके न कोटि उपावा। दानांतराय परजारा, हम पूज रचो सुखकारा॥१५१॥ ॐही दानातरायकर्मरहिताय नम अध्यं । मन दानलेन को भावे, दातार प्रसंग न पावै । लाभांतराय परजारा, हम पूज रचो सुखकारा ॥१५२॥ ॐ ह्री लाभातरायकर्मरहिताय नम अध्यं । पुष्पादिक चाहै भोगा, पर पाय न अवसर योगा। भोगांतराय परजारा, हम पूज रचो सुखकारा ॥१५३॥ ॐ ह्री भोगातरायकर्मरहिताय नम अयं । तिय आदिक बारम्बारा, नहिं भोग सके हितकारा। उपभोगांतराय परजारा, हम पूज रचो सुखकारा॥१५४॥ ____ॐ ह्री उपभोगातरायकर्मरहिताय नम अध्यं .. षष्ठम चेतन निज बल प्रकटावे, यह योग कभू नहिं पाते। वीर्यान्तराय परजारा, हम पूज रचो सुखकारा ॥१५॥ ॐ ह्री वीर्यान्तरायकर्मरहिताय नम' अध्यं । १२७ पूजा
SR No.010799
Book TitleSiddhachakra Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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