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सिद्ध वि०
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सामान कीली करि ठुकी सब हाड वज़ समान हो। है तीसरा संहनन जो नाराच ही परकार हो, यह त्याग बंध प्रबंध निवसो परम आनंद धार हो ॥६०॥
ह्री नाराचसहननरहिताय नम अध्यं । हो जडित छोटी कीलिका, सो संधि हाडो की जबै, कछु ना विशेषण वज़ के, सामान्य ही होवे सबै । है चौथवां संहनन जो, नाराच अर्द्ध प्रकार हो, यह त्याग बंध प्रबंध निवसो, परमानंद धार हो ॥६१॥
ॐ ह्री अर्द्ध नाराचसहननरहिताय नम अध्यं । जो परस्पर जडित होवे, संधि हाडनकी जहां, नहि कोलिका सो ठुकी होवे, साल संधी के तहां । है पांचवां संहनन जो, कीलक नाम कहाय हो, यह त्यागबंध प्रबंध निवसो, परमानंद धार हो॥६२॥
__ ह्री कीलिकसहननरहिताय नम अध्यं । कछु छिद्र कछुक मिलाप होवे, संधि हाडोमय सही,
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