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सिद्ध०
वि.
ॐ ह्री वैक्रियिकागोपागरहिताय नम अर्घ्य । साधुके शरीर मूलते कढ़े प्रशंसयोग,संशयकोविध्वंसकार केवलीसुलेतभोगई साहारक सो शरीर अंगवा उपंगनाश,सिद्धरूपहो नमोसुपाइयोप्रवाधवासई
ॐ ह्री पाहारकागोपागरहिताय नम अध्यं ।'८७ । है गीता छंद-संहनन बन्धन हाड होय अभेद वज सो नाम है,
नाराच कीली वृषभ डोरी बांधने की ठाम है। है आदिको संहनन जो जिम वज सब परकार हो । यह त्याग बंध प्रबंध निवसो परमानन्द धार हो॥८॥
ॐ ह्री वज्रर्षभनाराचसहननरहिताय नम अयं ।। ज्यो वजूकी कोली ठुकी हो हाड संधी मे जहां, सामान वृषभ जु जेवरी ताकरि बंधाई हो तहां। है दूसरा संहनन यह नाराज वजू प्रकार हो, यह त्याग बंध प्रबंध निवसो परम आनंद धार हो॥८६॥ पूजा
ॐ ह्री वज्रनाराचसहननरहिताय नम. अध्यं । नहिं वजूकी हो वृषभ अरु नाराच भी नहीं वजू हो,
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पचम