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ॐ ह्री कुब्जकनामसस्थानरहिताय नम. अध्यं । लघुसों लघु ठिगना रूप एम तन होवे जाको, वामन है परसिद्ध सिद्ध० लोकमें कहिये ताको। यह विपरीत स्वरूप त्याग,पायो निजात्मपद ।
बीजभूत कल्याण नमूभव्यनि प्रति सुखप्रद ॥३॥ ११२
ॐ ह्री वामनसंस्थानरहिताय नम. अयं । जिततित बहु आकार कहीं नहिं हो यकसारू, हुँडक अति असुहावन पाप फल प्रगट उघारू ।
यह विपरीत०, बीजभूत कल्याण ॥४॥ ॐ ह्री हुँडकसम्धानरहिताय नम अध्यं ।
लक्ष्मोधरा छन्द । जीवापभावसो जुकर्मकी क्रियाकरत,अगवाउपंग सो शरीरकेउदयसमेत सो औदारिकीशरीरअंगवाउपंगनाश, सिद्धरूपहोनमोसुपाइयोअबाधवास
___ॐ ह्री प्रौदारिकपागोपागरहिताय नम अयं ॥५॥ देवनारकीशरीर मांसरक्तसेनहोत,तासको अनेकभांतिभाप देसकैउद्योत पूजा वैक्रियिक सो शरीरअंगवाउपंगनाश,सिद्धरूपहो नमो सुपाइयोअबाधवास ११२