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सिद्ध
कारमारण यह बंधन तुमने, छेव कियो निरधारा भए०७४
ॐ ह्री कार्माणबन्धनरहिताय नम. अध्यं । वि० छन्द रोला-तन प्राकृत संस्थान प्रादि, समचतुरस बखानो,
ऊपर तले समान यथाविधि सुन्दर जानो। यह विपरीत स्वरूप त्याग, पायो निजात्म पद, बीजभूत कल्याण नमू, भव्यनि प्रति सुखप्रद ॥७६॥
ॐ ह्री समचतुरस्रसस्थानविमुक्ताय नमः अध्यं । । ऊपर से हो थूल तले हो न्यून देह जिस, परिमण्डलनिग्रोध नाम वरणो सिद्धांत तिस । यह विपरीत० ॥बीजभूत कल्यारण० ॥८॥
ॐ ह्री न्यग्रोधपरिमण्डलसस्थानरहिताय नम अध्यं । नीचेसे हो थूल न्यून होवे उपराही, बमई सम वामीक देह जिन आज्ञा माही । यह विपरीत०॥बीजभूत कल्यारण० ॥८१॥ पष्ठम
*ह्री वामीकसस्थानरहिताय नम अध्यं ।। जो कूबड़ आकार रूप पावे तन प्राणी, कुब्ज नाम संस्थान ताहि बरण जिन वानी । यह विपरीत० ॥बीजभूत कल्याण ॥२॥
पूजा
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