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केवल नसासों होय बेढी, मॉससों लतपत रही।
अंतिम स्फाटिक संहनन यह, हीन शक्ति प्रसार हो, सिद्ध०२
यह त्याग बंध प्रबंध निवसो परम आनंद धार हो॥६३॥
* ही स्फटिकसहननरहिताय नम' अर्घ्य । दोहा-वर्ण विशेष न स्वेत है, नामकर्म तन धार । स्वच्छ स्वरूपी हो नमू, ताहि कर्मरज टार ॥६४॥
___ॐ ह्री स्वेतनामकर्मरहिताय नम' अध्यं । वर्ण विशेष न पीत है, नामकर्म तन धार ॥स्वच्छ०॥६॥
ॐ ह्री पीतनामकर्मरहिताय नम अध्यं । वर्ण विशेष न रक्त है, नामकर्म तन धार ॥स्वच्छ०॥६६॥
ॐ ह्री रक्तनामकर्मरहिताय नम अयं । वर्ण विशेष न हरित है, नामकर्म तन धार ॥स्वच्छ०॥६७॥
ॐ ह्री हरितनामकर्मरहिताय नम अयं । गंध विशेष न कृष्ण है, नामकर्म तन धार ॥स्वच्छ०॥६॥
ॐ ह्री कृष्णनामकर्मरहिताय नमः मयं । गंध विशेष न शुभ कहो, नामकर्म तन धार ॥स्वच्छ०॥६॥
पचम
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