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हे भगवंत! नम तुमको तुम जीति लियो छिन मे अरि तैसो।।
ॐ ह्री नपुसकवेदरहिताय नमः अर्घ्य ॥४६।। जो तिय संग रमें विधि यो मन, औरन से कछु आनन्द माने। किंचित् काम नगै उरमें नित, शांति सुभावन की शुधि ठाने॥ सो जिनराज बखानत है नर, वेद हनो विधिके वश ऐसो।। हे भगवन्त! नमूतुमको तुम, जीत लियो छिन में अरि तैसो॥
ॐ ह्री पुरुषवेदहिताय नमः अध्यं ॥४७॥ जो नर संग रमें सुख मानत, अन्तर गूढ न जानत कोई।। हाव विलास हि लाज धरै मन,आतुरता करि तृप्त न होई॥ सो जिनराज बखानत है तिय, वेद हनो विधिके वश ऐसो। हेभगवन्त नमूतुमको तुम,जीतलियो छिनमेअरितैसो॥४८॥ परम ॐ ह्री स्त्रीवेदरहिताय नम. मध्यं । ४८).
बसन्ततिलका छन्द । आयु प्रमाण दृढ़ बंधन और नाही, गत्यानुसार थिति पूरण कर्णनाहीं।।
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पूजा
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