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सिद्ध
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सोई विनाश कोनो तुम देवनाथा, नंदू तुम्हे तरणकारण जोर हाथा॥
ॐ ह्री प्रायूकमरहिताय नमः अध्यं ॥४६॥ जो हैं कलेश अवधिसब होत जासो, तेतीससागर रहे थिति नर्कतासों। सोई विनाश कीनो तुम देव नाथा, वंदू तुम्हें तरण कारण जोर हाथा॥
ॐ ह्री नरकायुरहिताय नम अर्ध्य ॥५०॥ याही प्रकार जितने दिन देव देही, नासै अकाल नहिं जे सुर प्रायुसेही। सोई विनाश कीनो तुम देव नाथा, नंदूतुम्हे तरण कारण जोर हाथा॥
ॐ ह्री देवायुरहिताय नम अर्घ्य ॥५१॥' जासो कर त्रिजगकी थितिप्राउ पूरी, सोई कहो त्रिजगायुमहालघूरी। सोई विनाशकीनोतुमदेव नाथा, वंदू तुम्हें तरणकारण जोरहाथा॥५२॥
ॐ ह्री तिर्य चायुरहिताय नम अयं ॥५२॥ जेते नरायु विधि दे रस प्राप जाको, तेते प्रजाय नर रूप भुगाय ताको। षष्ठम सोई विनाश कीनों तुम देव नाथा, वंदू तुम्हें तरण कारण जोरहाथा। पूजा
ही मनुष्यायुरहिताय नम अध्यं ।।५।। पद्धड़ी छंद-जो करे जीवको बहु प्रकार, ज्यो चित्रकार चित्राम सार।
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