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सिद्ध यह संज्वलनमाया सिद्धांत गाया,नमू सिद्धके चरण ताको नसाया।३८॥
___ॐ ह्री सज्वलनावरणमायारहिताय नम अध्य । १०१ जहां संज्वलन लोभ है रंच नाही, निजानन्दको वास होवे तहांही। यही संज्वलन लोभ सिद्धांतगाया, नमू सिद्ध के चरण ताको नसाया॥३६ ___ॐ ह्री सज्वलनावरणलोभरहिताय नम अध्यं ।
. मोदक छन्द । जा करि हास्य भाव जुत होहि, हास्य किये परकी यह पाहि ।। सो तुम नाश कियो जगनाहि, शीश नम तुमको धरि हाहिं ॥४०॥
ॐ ह्रीं हास्यकर्मरहिताय नम अर्घ्य । प्रीत करै पर सो रति मानहिं, सो रति भेद विधी तिस जाहिं। सो तुम नाश कियो जगनाहि, शीश नमूतुमको धरि हाहिं ॥४१॥ ॐ ह्री रतिकर्मरहिताय नम अर्घ्य ॥
पचम जो परसों परसन्न न हो मन, प्रारति रूप रहे निज प्रानन । सो तुम नाश कियो जगनाहि, शीस नमूतुमको धरि हाहि ॥४२६
ॐ ह्री प्ररतिकर्मरहिताय नमः अर्घ्य ।
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