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ॐ ह्री प्रत्याख्यानावरणमानरहिताय नमः अर्घ्य ।।३३॥ प्रत्याख्यानी माया मुनि पदको हतै, श्रावकवत पूरण नहीं खंड़े जासतै । . वि० चारितमोहसुप्रकृतिरूपतिह नामहै, नाशकियो मै नमूसिद्ध शिवधामहै।
ॐ ह्री प्रत्याख्यानावरणमायारहिताय नम अध्यं । ॥३॥ श्रावक पदमे जास लोभको वास है, प्रत्याख्यानी श्रुतमें संज्ञा तास है। चारितमोह सुप्रकृतिरूप तिह नाम है,नाशकियो मैं नमूसिद्ध शिवधामहै । ॐ ह्री प्रत्याख्यानावरणलोभरहिताय नम अर्घ्य ।। ३५ ।।।
भुजगप्रयात छन्द । यथाख्यात चारित्रको नाश कारा, महावृत्त को जासमे हो उजारा।। यही संज्वलन क्रोध सिद्धांत गाया, नम सिद्धके चरण ताको नसाया॥३६
ॐ ह्री सज्वलनावरणक्रोघरहिताय नम अर्घ्य । रहे संज्वलन रूप उद्योत जेते, न हो सर्वथा शुद्धता भाव तेते। यही संज्वलन मान सिद्धांत गाया, नसिद्धके चरण ताको नसाया ॥३७
ॐ ह्री सज्वलनावरणमानरहिताय नम अर्घ्य । वहै संज्लनकी जहां मंद धारा, लही है तहां शुक्लध्यानी उभारा।
पचम
पूजा
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