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सिद्ध
एही भेद असाता होय, नम सिद्ध तुम नाशो सोय ॥१६॥
ॐ ह्री असातावेदनीकर्मरहिताय नम अयं । वि. ज्यों असावधानी मदपान, करत मोह विधिते सो जान । ९७१ ता विधि करि निज लाभ न होय, नमू सिद्ध तुम नाशो सोय ॥२०॥
_ . ॐ ह्री मोहकमरहिताय नम अयं । जाके उदय तत्त्व परतीत, सत्य रूप नहीं हो विपरीत । 5 पंच भेद मिथ्यात निवार, भये सिद्ध प्रणम् सुखकार ॥२१॥
ॐ ह्री मिथ्यात्वकर्मविनाशनाय नम अर्घ्य । प्रथमोपशम समकित-जब गले, मिथ्या समकित दोनों मिले। मिश्र भेद मिथ्यात निवार, भये सिद्ध प्रणम् सुखकार ॥२२॥
ॐ ह्री सम्यक्मिथ्यात्वकर्मरहिताय नम अर्घ्य ।। ६ दर्शनमे कुछ मल उपजाय, करै समल नहिं मूल नसाय । समय प्रकृति मिथ्यात निवार, भये सिद्ध प्रणम् सुखकार ॥२३॥
- ॐ ह्री सम्यक्त्वप्रकृतिमिथ्यात्वरहिताय नम अध्य । धर्म मार्ग मे उपजे रोष, उदय भये मिथ्यात सदोष ।
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