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प्रचला दर्शनावरण विनाशो, नमो सिद्ध स्वज्ञान प्रकाशो ॥१४॥
ॐ ह्री प्रचलाकर्मरहिताय नमः अध्यं । पर मुखसों लार बहै अति भारी, हस्त पाद कंपत दुखकारी। प्रचला प्रचला वर्ण विकाशो, नमो सिद्ध स्वज्ञान प्रकाशो ॥१५॥
ॐ ह्री प्रचलाप्रचलाकर्मरहिताय नम अयं । सोता हुआ करै सब काजा, प्रगटावै प्राकर्म समाजा। यह स्त्यानगृद्धि विधि नाशो, नमो सिद्ध स्वज्ञान प्रकाशो ॥१६॥
ॐ ह्री स्त्यानगृद्धिकर्मरहिताय नमः अध्यं । जे पदार्थ हैं इन्द्रिय योग, ते सब वेदे जिय निज जोग । सोई नाम वेदनी होई, नम सिद्ध तुम नासो सोई ॥१७॥
ॐ ह्री वेदनीकर्मरहिताय नम. अध्यं । रतिके उदय भोग सुखकार, भोग जिय शुभ विविध प्रकार । साता भेद वेदनी होय, नमूसिद्ध तुम नाशो सोय ॥१८॥
ॐ ह्री सातावेदनीकर्मरहिताय नमः अध्यं । अरति उदय जिय इन्द्री द्वार, विषयभोग वेदे दुखकार ।
षष्ठम पूजा