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वि.
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क्षय उपशम आवर्ण विनाशो, नमो सिद्ध स्वज्ञान प्रकाशो ॥४॥
ॐ ह्री प्रसस्यभेदलोक अवधिज्ञानावरण विमुक्ताय नम अध्यं । सिद्ध० है, असंख्य परमान प्रमाना, मनपर्यय के भेद बखाना।
क्षय उपशम आवर्ण विनाशो, नमो सिद्ध स्वज्ञान प्रकाशो ॥५॥
___ॐ ह्रो असंख्यप्रकारमनपर्ययज्ञानावरणीकविमुक्ताय नमः अध्यं । निखिल रूप गुरणपर्यय ज्ञानं, सत स्वरूप प्रत्यक्ष प्रमानं । केवल पावर्णी विधि नाशों, नमो सिद्ध स्वज्ञान प्रकाशो ॥६॥
ॐ ह्री निखिलरूप-गुणपर्याय-बोधक-केवलज्ञानावरणविमुक्ताय नमः अध्यं । द्वारपती भूपति के ताई, रोक रहै देखन दे नाहीं। सोई दर्शनावरण विनाशो, नमो सिद्ध स्वज्ञान प्रकाशो ॥७॥
ॐ ह्री सकलदशनावरणीकर्मविनाशकाय नमः अध्यं । मूर्तीक पदको प्रतिभासन, नेत्र द्वार होवै परकाशन । चक्षु दर्शनावरण विनाशो, नमो सिद्ध स्वज्ञान प्रकाशो ॥८॥
___ॐ ह्री चक्षुदर्शनावरणकमरहिताय नम. अयं । हगविन अन्य इन्द्री मन द्वारे, वस्तुरूप सामान्य उघारे ।
षष्ठम
पूजा