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•unniwani
ॐ ह्री नानुमोदितकायलोभसमारम्भ-शौचगुणाय नमः अध्य । दोहा काय द्वार प्रारम्भकी, लोभ उदय विधि नाश । नमो चिदातम पद लियो, शुद्ध ज्ञान परकाश ॥१२७॥
ॐ ह्री प्रकृतलोभारम्भचिदात्मने नम अध्यं । काय द्वार प्रारम्भ विधि, लोभ उदय न कराय। निज अवलम्बित पद लियो, नमसदा तिन पाय ॥१२८॥
ॐ ह्री प्रकारितकायलोभनिरालबाय नम अध्यं । लोभी तन प्रारम्भ में, आनन्द रीती भेंट। नमसिद्ध पद पाइयो, निज प्रातम गुरण श्रेष्ठ ॥१२॥ ॐ ह्री नानुमोदितकायलोभारम्भात्मने नमः अध्यं ।
सवैवा इकतोसा जेते कछ पुदगल परमाणु शब्दरूप, भये हैं अतीत काल आगे होनहार हैं। तिनको अनंत गुण करत अनंतवार, ऐसे महाराशि रूपधरै विसतार हैं। सब हो एकत्र होय सिद्ध परमातमके, मानो गुण गण उचरन अर्थधार है। तौभी इक समयके अनंत भागअनंदको, कहत न कहैं हम कौन परकार हैं।