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ॐ ह्री अष्टाविंशत्यधिकशतगुणयुक्तसिद्धेभ्यो नमः अध्यं ।
१०८ वार जाप देना चाहिये। .
अथ जयमाला। ८६ दोहा-शिवगुण सरधा धार उर, भक्ति भाव है सार। केवल निज आनन्द करि, करूं सुजस उच्चार ॥
पद्धडी छन्द। जय मदन कदन मन करण नाश, जय शांतिरूप निज सुख विलास । जय कपट सुभट पट करन सूर, जय लोभ क्षोभ मद दम्भचूर ॥१॥ पर परणति सो अत्यन्त भिन्न, निज परिणति सो अति ही अभिन्न । अत्यन्त विमल सब ही विशेष, मल लेश शोध राखो न शेष ॥२॥ मरिण दीप सार निर्विघन ज्योत, स्वाभाविक नित्य उद्योत होत । त्रैलोक्य शिखर राजत अखण्ड, सम्पूरण धुति प्रगटी प्रचण्ड ॥३॥ मुनि मन मन्दिर को अन्धकार, तिस ही प्रकाशसौं नशत सार। सो सुलभ रूप पावै निजार्थ, जिस कारण भव भव भूमे व्यर्थ ॥४॥
पूजा