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चेतन मूरति पाय, शुध काय प्रणम् सदा ॥६६॥ ____ॐ ह्री अकारितकायक्रोघसरम्भ शुद्धकायाय नम अध्यं । हर्षित शीश हिलाय, क्रोध उदय संरम्भ मे। त्यागत भये प्रकाय, नमू सिद्ध पद भावयुत ॥६७॥ _____ॐ ह्री नानुमोदितकायक्रोधसरम्भ-प्रकायाय नम अयं । समारम्भ विधि मेटि, कायिक चेष्टा क्रोध की। स्वै गुरणपर्य समेट, भक्ति सहित प्रणम् सदा ॥६॥
ॐ ह्री प्रकृतकायक्रोधसमारम्भस्वान्वयगुणाय नमः अर्घ्य । ६ दोहा-समारम्भ विधि क्रोध युत, तनसो नहीं कराय।
नित प्रति रति निजभाव मे, बंदू तिनके पाय ॥६६॥ ____ॐ ह्री मकारितकायक्रोधसमारम्भभावरतये नमः अर्घ्य । समारम्भ सो कायसो, क्रोध सहित परसंस। स्व अभिन्न पद पाइयो, नमूत्याग सरवंस ॥१०॥
ॐ ह्री नानुमोदितकायक्रोधसमारम्भस्वान्वयधर्माय नम अध्यं । क्रोधित कायारम्भ तजि, परसो रहित स्वभाव ।
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