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1)
दोहान
सिद्धा
वि.
दोहा-लोभ सहित प्रारम्भ को, करत नहीं व्याख्यान ।
नूतन पंचम गति लहो, न सिद्ध भगवान ॥६२॥ ____ॐ ह्री प्रकृतवचनलोभारभपरीतावस्थाय नम अर्घ्य । लोभ वचन प्रारम्भ को, कहत न पर के हेत। समयसार परमातमा, नमत सदा सुख देत ॥६॥
ॐ ह्री अकारितवचनलोभारभसमयसाराय नम अर्घ्य । सोरठा-नानुमोद वच द्वार, लोभ सहित प्रारम्भमय ।
अजर अमर सुखदाय, नम निरन्तर सिद्धपद ॥६४॥
__ ह्री नानुमोदितवचनलोभारम्भनिरतराय नम अध्यं । अडिल्ल-क्रोधित रूप भयंकर हस्तादिक तनी,
करत समस्या सो संरम्भ प्रकाशनी। सो तुम नाशो काय गुप्ति करि यह तदा।
दृष्टि अगोचर काय गुप्ति प्रणम् सदा ॥६॥
ॐ ह्री प्रकृतकायकोषसरम्भकायगुप्तये नम अयं । सोरठा-पर प्रेरण निज काय, क्रोध सहित संरम्भ तज ।
पंचम पूजा ७८