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नमू सिद्ध पद यह विपरीति सु जिन हरो, सिद्ध
सकल चराचर ज्ञानी व्यापक गुण वरो॥७॥
ॐ ह्री अकारितवचनलोभसरम्भव्यापकगुणाय नम अयं । ७७ लोभी वच संरम्भ हर्ष परकाशनं, नाना विधि संचरे पाप दुख नाशनं सोतुमनाशतशाश्वतधु वपदपाइयो,नमूअचलगुणसहितसिद्धमन भाइयो
____ॐ ह्री नानुमोदितवचनलोभसरम्भ-अचलाय नम अर्घ्य । सोरठा-समारम् के बेन, लोभ सहित पर आसरै।
तज निरलम्बी ऐन, नम सिद्ध उर धारिके ॥६॥ ___ ह्री प्रकृतवचनलोभसमारम्भनिरालयाय नमः अध्यं । समारंभ उपदेश, लोभ उदै थिति मेटिकें।' पायो अचल स्वदेश, नमनिराश्रय सिद्ध गुरण ॥६॥
ॐ ह्री प्रकारितवचनलोभसमारम्भनिराश्रयाय नम. अयं । नानुमोद वच लोभ, समारंभ परवृत्त में। नम् तिन्है तजि क्षोभ, नित्य अखण्ड विराजते ॥१॥ ॐ ह्री नानुमोदितवचनलोभसमारम्भ-अखण्डाय नम. जय॑ ।
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