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मायायुत प्रारंभ की, वचन प्रवृत्ति नशाय । नअनन्त अवकाश गुरण, ज्ञान द्वार सुखदाय ॥३॥
ह्री प्रकृतवचनमायारभअनन्तावकाशाय नमः अर्घ्य । मायायुत प्रारंभ मय, मेट वचन उपदेश। भये अमल गुण ते नमू, रागद्वेष नहीं लेश ॥४॥
ॐ ह्री प्रकारितवचनमायारभअमलगुणाय नमः अर्घ्य । मायायुत प्रारम्भ मय, मेट वचन आनन्द । भये अनन्त सुखी नमू, सिद्ध सदा सुखवृन्द ॥८॥ ॐ ह्री नानुमोदितबचनमायारभनिरवधिसुखाय नम अध्यं ।
अहिल्ल छन्द । जो परिग्रहको चाह लोभ सों मानिये, विधि विधान ठानत संरंभ बखानिये वचन द्वार नहीं करे नमू परमातमा, सब प्रत्यक्षलखें व्यापक धर्मातमा।
पंचम ॐ ह्री अकृतवचनलोभसरम्भव्यापकधर्माय नम अध्यं । वर्तावन संरम्भ हेत परके तई,
लोभ उदै करि वचन कहै हिंसामई।
पूजा
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