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जरअर
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चित्तण तेण देवो इमं भणिओ॥८२॥ किं कायवमओ मे? एक्को च्चिय जिणुवइट्टओ धम्मो। संजायपच्चएणं सत्तणुरूवं पवनो तो ॥ ८३ ॥ भणिया देवेणं सा अह सुंदरि! केरिसं तुम काही? सबंधयारपडिबंधकारए उग्गए सूरे ॥ ८४ ॥ किं | दीवेण पओयणमओ तुम चिय ममं पमाणं ति । इय निच्छियतच्चित्तो देवो सावत्थिनयरीए ॥ ८५॥ तकालमुणिपहाणा सिद्धायरिया गुरू पविहरंति । तेसिं सीलपरिक्खणनिमित्तमह कवडदिक्खाए ॥८६॥ दिक्खित्ता नेइ तयं तेसि समी तहाविहअकाले । एगागिणिं च सामइयसुत्तआलावगनिमित्तं ॥ ८७॥ भणिओ य तीइ सूरी वंदिय भालयलमेलियफराए । भयवं! रोगवसाओ सामइयसुयं वियलियं मे ॥८८॥ होउं दयावरा मे देहालावगमिमं खणं एगं । गुरुणा दिन्नुवओगेण चिंतियं नोचिओ समओ॥ ८९॥ एगागिणी जमेसा तहा अकाले महंतओ अविही। तो कह सामइयसुयस्स देमि आलावगमिमीए? ॥९०॥ पडिसिद्धा सा तेणं अजे! नेवोचियं तुहं एयं । दावियकोववियारा सहसत्ति अदंसणीहया ॥९१॥ विहिपक्खबद्धलक्खं निउणं जाणित्तु सूरिमह देवो। अइभत्तीए संतोसमुवगओ तम्मि सरिम्मि ॥ ९२॥ तो नियरूवं दंसिय वंदिय विणएण धरणिनिहियसिरो। कहिओ सर्व नियपुबजम्मवुत्तंतमप्पेइ ॥१३॥ तं सुंदर गुरूणं, तेवि तहाविहपवित्तिणीइ तओ। सामन्नसमासन्नं काउंसा सग्गमणुपत्ता ॥ ९४॥णाओ इमो वइयरो लोएणं अविहिणा न सुयदाणं । गुरुणा कयं ति अबो समुज्जला जिणमए नीई ।। ९५॥ संपत्तदोहिबीओ कोई अन्नो पवन्नसम्मत्तो। देसेणं सबेण य चरणस्साराहओ जाओ॥ ९६॥ एवं अन्नेणवि सुयहरेण सइ अप्पणो परेसिं च । बाढमणुग्गहमइणा पयट्टियवं विहिपरेण ॥ ९७ ॥ इति ॥
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नाइ ॥ ९५ ॥ संपत्तदोसि
र णस्साराहओ जाओ
3.प.म.८
15/च । बाढमणुग्गहमइणा
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