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श्रीउपदे
शपदे ॥३५२॥
शसकलावतीनिदर्शनम्
कविलो भणइ पुरीसं कस्सेरिसमाह सो मह तुह य । णणु सा.अईवसिढिला होइसि भणाइतो इयरो ॥ ३३८॥बह विणवसओ रविकरसुकं एयारिसं' इमं जायं। तहवि असतेण विम्हओ अप्पणा विहिओ.॥३३९ ॥ अइगरुयविसाय६ वसो रडिउं लग्गो विमुक्कपोक्कारो.। मम.भो अणज! निग्धिण! : निकारणवेरिओ दिव! ॥ ३४०॥ विट्टालिओ जमेवं
तुमए है धम्मकम्मकारीवि। किर सुद्धसोयजोरगं साहिस्सं मुत्तिआयारं ॥ ३४१॥ इय सयणधणे सुहिणो चइऊण इहागओऽहमसहाओ। तं पावकयंतवसा विवरीयं पेच्छ.संजायः॥३४२॥ किं कुणउ पुरिसयारो नरस्स दइवे परंमुहे जाए। साहेसि कस्स एवं कस्स व गच्छामि सुद्धिकए? ॥३४३ ॥ पच्छातावपरद्धो भणिओ सो वाणिएण भुजोवि। आयकए ५
अंबराहे मा रूससु भट्ट दंइवस्स ॥ ३४४॥ विउसेहिं समाइन्नं सोय चइऊण कूडबुद्धीए । अइवाएण दुमो इव भग्गो *सि फुडं तुर्म मूढ! ॥ ३४५-॥ एसोवि महामोहो जह किर नीरेण सुज्झए पावं । ण्हायाण होइ धम्मो निबंधणं, सग्गमो 8 खाण ॥ ३४६ ॥ अंगस्सवि जेण मलो सुज्झइ बज्झो न अंतरंगोवि । जीव विलग्गं सुहुमं कह तेण विसुज्झई पावं? । ॥ ३४७॥ देहगयं बज्झमलं सुज्झइणीरेण खालिए देहे । जीवगयं पुणपावं सुज्झइ परिणामसुद्धीए ॥ ३४८॥ एवं पव त्तियं पुण पुराणपुरिसेहिं असुइदेहस्स । दोसच्छायणहे किंचि विभूसानिमित्तं च ॥ ३४९॥ देवच्चणम्मि जम्हा अवस्सकायवमेयमुवइटुं । तेण पसिद्धी लोए धम्माय भवे सिणाणमिह ॥ ३५० ॥मा होंतु अमजाया मणुया तिरियष अविरयाहारा.। भोयणपजंतम्मिन्सोयविहाणं अओ विट्ठ ॥ ३५१॥ तह हीणजाइयाणं कीरइ खलु छुत्तिओत्ति परीहारो। तेसिं पांवायारं कुलयावि कुणति णो जेण-॥ ५३॥ एवं सोयायारे कारणभेया अणेगहा रूदे । धम्मत्थिणावि एसो
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